विनती है मेरी- कर दो तब्दील अदालतों को मयखानों में, सुना है नशे में कोई, झूठ नहीं बोलता।
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दुनियाँ में इतनी रस्में क्यों हैं, प्यार अगर ज़िंदगी है तो इसमें कसमें क्यों हैं, हमें बताता क्यों नहीं ये राज़ कोई, दिल अगर अपना है तो किसी और के बस में क्यों है…
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ये इश्क़ बनाने वाले की मैं तारीफ करता हूं... मौत भी हो जाती है और क़ातिल पकड़ा भी नही जाता..
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उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने औरों के वजूद में नुक़्स निकालते निकालते इतना ही खुद को तराशा होता तो फ़रिश्ते बन जाते..
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बेवजह दीवार पर इल्ज़ाम है बंटवारे का लोगों, को एक कमरे में भी अलग रहते देखा है..
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हम न होते तो आपको ग़ज़ल कौन कहता आपके चेहरे को कंवल कौन कहता ये तो करिश्मा है प्यार करने वालों का वरना पत्थरो को ताज महल कौन कहता।
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दर्द को दर्द से न देखो, दर्द को भी दर्द होता है, दर्द को ज़रूरत है दोस्त की, आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...
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चंद रुपयों मैं बिकता हैं यहां इंसान का ज़मीर, कौन कहता हैं मेरे देश में महंगाई बहुत है।
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कोई तो है जो फैसला करता है पत्थरों के मुकद्दर का.. किसे ठोकरों पर रहना है और किसे भगवान होना है।
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मेरी जिंदगी में खुशियां तेरे बहाने से है.... आधी तुझे सताने से है, आधी तुझे मनाने से है ।
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लहरों को खामोश देखकर ये मत समझाना, की समंदर में रवानी नहीं है... हम जब भी उठेंगे तूफां बनकर उठेंगे, बस अभी उठने की ठानी नहीं है....
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'कागज़' के 'नोटों' से 'आखिर'... 'किस-किस' को.....'खरीदोगे' 'किस्मत' 'परखने' के लिए 'आज' भी 'सिक्का' हीं 'उछाला' जाता है
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कितनी मिन्नतें कीं दर-दर की ठोकरें खाईं मां बाप ने की एक बेटा हो जाए... . . और वो हरामखोर FB पर प्रिया शर्मा बना बैठा है .!!
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जिस हॉस्पिटल में ये डॉक्टर हैं वहीं इनकी बीवी भी नर्स है. क्या अजीब जुल्म सहना पड़ता है अपनी बीवी को सिस्टर कहना पड़ता है
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मैँने लिखी गज़ल उसे बकरी चबा गई, चर्चा है चारों ओर बकरी शेर खा गई
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किस को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो...,जिन्दगी में सताने वाले भी अपने थे,और दफनाने वाले भी अपने थे..
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कौन पूछता है,... पिंजरे में बंद पंछियों को, याद वही आते हैं, जो उड़ जाते हैं......
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सोचा था छुपा लेंगे गम अपना..। कमबख्त आंखों ने ही बगावत कर दी..।।
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खबर है कि उसने खरीद लिया है,करोड़ों का घर शहर में, लेकिन आंगन दिखाने बच्चों को,वो अब भी गांव आता है..
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दुनियाँ में इतनी रस्में क्यों हैं, प्यार अगर ज़िंदगी है तो इसमें कसमें क्यों हैं, हमें बताता क्यों नहीं ये राज़ कोई, दिल अगर अपना है तो किसी और के बस में क्यों है…
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ये इश्क़ बनाने वाले की मैं तारीफ करता हूं... मौत भी हो जाती है और क़ातिल पकड़ा भी नही जाता..
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उम्र ज़ाया कर दी लोगों ने औरों के वजूद में नुक़्स निकालते निकालते इतना ही खुद को तराशा होता तो फ़रिश्ते बन जाते..
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बेवजह दीवार पर इल्ज़ाम है बंटवारे का लोगों, को एक कमरे में भी अलग रहते देखा है..
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हम न होते तो आपको ग़ज़ल कौन कहता आपके चेहरे को कंवल कौन कहता ये तो करिश्मा है प्यार करने वालों का वरना पत्थरो को ताज महल कौन कहता।
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दर्द को दर्द से न देखो, दर्द को भी दर्द होता है, दर्द को ज़रूरत है दोस्त की, आखिर दोस्त ही दर्द में हमदर्द होता है...
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चंद रुपयों मैं बिकता हैं यहां इंसान का ज़मीर, कौन कहता हैं मेरे देश में महंगाई बहुत है।
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कोई तो है जो फैसला करता है पत्थरों के मुकद्दर का.. किसे ठोकरों पर रहना है और किसे भगवान होना है।
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मेरी जिंदगी में खुशियां तेरे बहाने से है.... आधी तुझे सताने से है, आधी तुझे मनाने से है ।
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लहरों को खामोश देखकर ये मत समझाना, की समंदर में रवानी नहीं है... हम जब भी उठेंगे तूफां बनकर उठेंगे, बस अभी उठने की ठानी नहीं है....
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'कागज़' के 'नोटों' से 'आखिर'... 'किस-किस' को.....'खरीदोगे' 'किस्मत' 'परखने' के लिए 'आज' भी 'सिक्का' हीं 'उछाला' जाता है
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कितनी मिन्नतें कीं दर-दर की ठोकरें खाईं मां बाप ने की एक बेटा हो जाए... . . और वो हरामखोर FB पर प्रिया शर्मा बना बैठा है .!!
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जिस हॉस्पिटल में ये डॉक्टर हैं वहीं इनकी बीवी भी नर्स है. क्या अजीब जुल्म सहना पड़ता है अपनी बीवी को सिस्टर कहना पड़ता है
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मैँने लिखी गज़ल उसे बकरी चबा गई, चर्चा है चारों ओर बकरी शेर खा गई
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किस को क्या इलज़ाम दूं दोस्तो...,जिन्दगी में सताने वाले भी अपने थे,और दफनाने वाले भी अपने थे..
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कौन पूछता है,... पिंजरे में बंद पंछियों को, याद वही आते हैं, जो उड़ जाते हैं......
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सोचा था छुपा लेंगे गम अपना..। कमबख्त आंखों ने ही बगावत कर दी..।।
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खबर है कि उसने खरीद लिया है,करोड़ों का घर शहर में, लेकिन आंगन दिखाने बच्चों को,वो अब भी गांव आता है..
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